विस्तार कार्यक्रम

विस्तार कार्यक्रम की योजनाएँ हिंदीतरभाषी प्रांतों में हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित हैं। हिंदीतरभाषी हिंदी-प्रेमियों, विद्वानों, लेखकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों, प्राध्यापकों और अनुवादकों को सहयोजित करने वाली ये योजनाएँ अखिल भारतीय स्तर पर विविध भाषा-भाषियों को एक-दूसरे के निकट लाती हैं। इन योजनाओं के माध्यम से विभिन्‍न भाषा-भाषियों को हिंदी का एक मंच उपलब्ध होता है, जहाँ हिंदी भाषा के माध्यम से भारतीय भाषाओं और उनके साहित्य के संबंध में अधुनातन जानकारी ही नहीं मिलती अपितु परस्पर विचार-विमर्श और संवाद के जरिए एक-दूसरे को जानने-समझने में मदद भी मिलती है एवं एक-दूसरे के रीति-रिवाजों तथा लोकचेतना का ज्ञान भी होता है। इन योजनाओं से भाषाई एकता को बढ़ावा मिलता है और भारतीय संस्कृति के समान तत्वों के दर्शन होते हैं। हिंदी के अखिल भारतीय स्वरूप की व्यावहारिक जानकारी देने वाले इन विस्तार कार्यक्रमों के अंतर्गत अधोलिखित योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं :-

  • हिंदीतरभाषी हिंदी नवलेखक शिविर
  • छात्र अध्ययन यात्रा
  • शोध छात्र यात्रा अनुदान
  • प्राध्यापक व्याख्यान-माला
  • राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

(क) हिंदीतरभाषी हिंदी नवलेखक शिविर

(नव - हिंदी लेखक गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों की कार्यशाला):

हिंदीतरभाषी हिंदी नवलेखकों को कहानी, कविता, नाटक व साहित्य की अन्य विधाओं तथा अनुवाद, पत्रकारिता आदि की विस्तृत और अधुनातन जानकारी देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष पच्चीस-पच्चीस हिंदीतरभाषी हिंदी नवलेखकों के आठ शिविर आयोजित किए जाते हैं। हिंदीतरभाषी प्रांतों में आठ दिनों तक चलने वाले इन शिविरों में नवलेखकों को मार्गदर्शन देने के लिए तीन स्थापित हिंदी साहित्यकारों / विद्वानों / संपादकों आदि को भी आमंत्रित किया जाता है। शिविरों में नवलेखकों द्वारा लिखी गई रचनाओं पर चर्चा होती है, उनमें संशोधन किए जाते हैं तथा विधा-विशेष की अद्यतन प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इस प्रकार नवलेखकों की सृजनात्मक और समालोचनात्मक प्रतिभा को दिशा देने का प्रयास किया जाता है। विभिन्‍न भाषा-भाषी हिंदी नवलेखक इस दौरान हिंदी मंच पर लघु भारत के रूप में अपनी अविस्मरणीय छाप छोड़ते हैं। भारतीय नवलेखक की सोच और लेखन को इस योजना के माध्यम से सकारात्मक दिशा मिलती है। इन शिविरों में भाग लेने वाले अनेक नवलेखक समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में निरंतर अपनी पहचान बना रहे हैं।

(ख) छात्र अध्ययन यात्रा

हिंदीतरभाषी प्रांतों में स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर स्तर पर हिंदी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए प्रतिवर्ष दो अध्ययन यात्राओं का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक अध्ययन-यात्रा में पचास-पचास विद्यार्थियों को हिंदी भाषी प्रांतों के तीन-तीन विश्वविद्यालयों / स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं में ले जाया जाता है तथा हिंदी के प्रख्यात विद्वानों, साहित्यकारों एवं हिंदी-सेवियों से उनकी भेंट कराई जाती है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक महत्व के स्थलों का भी यथासंभव भ्रमण कराया जाता है। इस योजना के माध्यम से विद्यार्थियों को हिंदी के व्यावहारिक रूप को समझने में बहुत मदद मिलती है तथा उच्‍चारण अंतर का पता भी चलता है। हिंदी भाषा व साहित्य के विविध पक्षों की प्रत्यक्ष और अधुनातन जानकारी इस योजना से मिलती है। विविध प्रांतों से आए विद्यार्थी इन शिविरों में नौ-दस दिन तक एक साथ रहकर हिंदी भाषा के माध्यम से परस्पर विचार-विनिमय करते हैं। इस प्रकार भारतीय युवा मानस हिंदी के मंच से अपनी एकता-यात्रा आरंभ करता है।

(ग) शोध छात्र यात्रा अनुदान

हिंदीतरभाषी प्रांतों के विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा एवं साहित्य के संबंध में शोधरत बीस हिंदीतरभाषी शोधार्थियों को प्रतिवर्ष हिंदीभाषी प्रांतों के विश्वविद्यालयों में शोध-संबंधी सामग्री जुटाने तथा विचार-विमर्श हेतु आने-जाने के लिए यात्रा-अनुदान दिया जाता है। इससे एक शोधार्थी अधिकतम तीन विश्वविद्यालयों में जाकर शोध-संबंधी सामग्री एकत्रित कर सकता है। इससे न केवल आवश्यक सामग्री एकत्रित करने में महत्वपूर्ण सुविधा प्राप्‍त होती है, बल्कि शोधार्थी हिंदीभाषी प्रांतों में रह रहे साहित्यकारों तथा विद्वानों से साक्षात्कार भी कर सकता है। इस योजना से हिंदी भाषा में शोध के व्यावहारिक पक्ष को बल मिलता है।

(घ) प्राध्यापक व्याख्यान-माला

हिंदीतरभाषी तथा हिंदीभाषी क्षेत्रों में स्थित विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों में सामंजस्य स्थापित करने तथा वैचारिक आदान-प्रदान के उद्देश्य से प्राध्यापक व्याख्यान माला योजना का प्रारंभ किया गया है। इसके अंतर्गत हिंदीतरभाषी क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों के चार प्राध्यापक हिंदीभाषी क्षेत्रों में तथा हिंदीभाषी क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों के चार प्राध्यापक हिंदीतरभाषी क्षेत्रों में जाकर क्रमश: तीन-तीन विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों में साहित्य की विभिन्‍न विधाओं तथा ज्वलंत साहित्यिक मुद्दों पर हिंदी में व्याख्यान देते हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी भाषा एवं साहित्य के स्थानीय प्राध्यापकों और विद्यार्थियों से विचार-विमर्श भी किया जाता है। हिंदी के मंच से किया गया यह वैचारिक आदान-प्रदान भारत के हिंदी प्राध्यापकों, विद्यार्थियों व हिंदी-प्रेमियों को बौद्धिक एवं भावनात्मक स्तरों पर जोड़ता है।

(ङ) राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी

भारतीय साहित्य की विविध विधाओं और तुलनात्मक भारतीय साहित्य के संबंध में राष्‍ट्रीय स्तर पर विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष दो राष्‍ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन देश के विभिन्न हिंदी तथा हिंदीतरभाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों / स्वैच्छिक संस्थाओं के सहयोग से किया जाता है। इनमें से एक संगोष्ठी हिंदीतरभाषी तथा दूसरी हिंदीभाषी क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय अथवा प्रख्यात हिंदी-सेवी संस्था में आयोजित की जाती हैं। प्रत्येक संगोष्‍ठी में चार हिंदीभाषी तथा चार हिंदीतरभाषी वरिष्‍ठ प्राध्यापक, साहित्यकार, विद्वान आदि विस्तृत विचार-विमर्श करते हैं और अपने आलेख प्रस्तुत करते हैं। यह योजना भारतीय साहित्य की समान एवं मूलभूत एकता को उजागर करने हेतु परस्पर विचार-विनिमय के लिए प्रेरित करती है। भारतीय साहित्य की विविध विधाएँ वास्तव में भारतीय मानसिकता और लोक-चेतना को हिंदी भाषा के माध्यम से जानने का सशक्‍त उपक्रम है। इस योजना के माध्यम से भारतीय साहित्य के समान तत्वों, हिंदी भाषा में भारतीय साहित्य की उपलब्धता और हिंदी साहित्य के भारतीय भाषाओं में अनुवाद की जानकारी मिलती है।

विस्तार आवेदन-पत्र

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